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कृषि मंत्रालय

प्याज और टमाटर के उत्पादन में 5% कमी और बागवानी में 10 गुना बढ़ोत्तरी, सरकारी आंकड़ा जारी

प्याज और टमाटर के उत्पादन में 5% कमी और बागवानी में 10 गुना बढ़ोत्तरी, सरकारी आंकड़ा जारी

भारत में केंद्रीय कृषि मंत्रालय के द्वारा हर साल अग्रिम अनुमान जारी किया जाता है, जिसमें फसलों में हो रहे वृद्धि या गिरावट के बारे में बताया जाता है। बता दे कि केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्रालय के द्वारा साल 2021-22 के लिए भी तीसरा अग्रिम अनुमान जारी कर दिया गया है, जिसमें बागवानी, दलहन, तिलहन एवं खाद्यान्न कृषि उत्पादन का आंकड़ा जारी किया गया है।

इस अनुमान के मुताबिक टमाटर का उत्पादन लगभग 5 फीसदी तक कम हुआ है, वहीं आपको बता दें कि पिछले साल टमाटर का पैदावार लगभग सवा दो करोड़ टन थी, वहीं इस साल दो करोड़ के आसपास में ही रह गई। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के द्वारा जारी इस अग्रिम अनुमान के अनुसार सिर्फ टमाटर ही नहीं बल्कि कई अन्य फसलों में काफी गिरावट हुई है, जिसका मुख्य कारण मौसम में बदलाव बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इस साल होने वाले आलू के उत्पादन में लगभग 5% की कमी रहने की उम्मीद है। यह उम्मीद मौसम में हो रहे बदलाव के कारण जताया जा रहा है, पिछले साल के आंकड़े के अनुसार आलू का उत्पादन 5 करोड़ 61.7 लाख टन था। वहीं इस साल आलू का उत्पादन 5 करोड़ 33.9 लाख टन के आसपास ही रहेगा, इस जारी तीसरा अग्रिम अनुमान में बताया जा रहा है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस बार धान दलहन और तिलहन के उपज के रंगों में काफी वृद्धि हुई है, वही टमाटर फल व आलू के उत्पादन में लगभग 4 से 5% का गिरावट आया है।

"कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय/विभाग, भारत सरकार द्वारा जारी वर्ष 2021-22 के लिए 
बागवानी फसलों के क्षेत्र और उत्पादन का तीसरा अग्रिम अनुमान" से सम्बंधित सरकारी प्रेस 
इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें.

प्याज के उत्पादन में होगा बढ़ोतरी

2021-22 के आंकड़ों के अनुसार मौसम में बदलाव के कारण प्याज का उत्पादन काफी प्रभावित रहेगा, इसके बावजूद भी प्याज के उत्पादन में पिछले बार की तुलना में इस बार काफी बढ़ोत्तरी का अनुमान लगाया जा रहा है। इससे यह जाहिर होता है कि पिछले साल प्याज का उत्पादन काफी कम रहा है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा जारी तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार इस बार प्याज का उत्पादन लगभग तीन करोड़ 12.7 लाख टन की संभावना है, वहीं पिछले साल देखा जाए तो प्याज का उत्पादन लगभग दो करोड़ 66.4 लाख टन था।

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गेहूं के उत्पादन से देश पर कोई प्रभाव नहीं

कृषि मंत्रालय के द्वारा जारी इस अग्रिम अनुमान में अभी देखा जा रहा है कि प्रमुख फसलों के अलावा इस बार बागवानी वाले फसल में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी। बता दें कि आंकड़ों के मुताबिक इस साल प्रमुख खाद्यान्न में जैसे गेहूं के उत्पादन को लेकर कुछ पूर्वानुमान खास अच्छा नहीं लगाया जा रहा है, संभावना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल गेहूं का उत्पादन 31 लाख टन कम होकर 10.64 करोड़ टन रहने की संभावना है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है, कुल खाद्यान्न उत्पादन की बात करें तो वह पिछले साल के मुताबिक 37.7 लाख टन ज्यादा है। आपको बता दें कि इस जारी अग्रिम अनुमान में 31.45 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का पूर्वानुमान है, आपको यह भी बता दें कि इतना उत्पादन के साथ भी गेहूं का स्टॉक देश में अच्छा है, इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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टॉप पर फल एवम् सब्जी की खेती

देशभर में सरकार बागवानी फसल की खेती को बढ़ावा देने में काफी तत्पर दिख रहा है, जिसका परिणाम भी दिखना शुरू हो गया है। सरकार की तत्परता के साथ-साथ किसानों की तत्परता भी सब्जी की खेती की तरफ काफी बढ़ी है, जिसके कारण इस साल जारी तीसरे अग्रिम अनुमान में सब्जियों का उत्पादन 20 करोड़ 38.4 टन रहने का अनुमान है। यह पिछले साल दो करोड़ 4.5 लाख तक ही सीमित था। पूरा हिसाब देखा जाए तो सब्जी की खेती में लगभग 10 गुना ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिलेगा, जिसके लिए सरकार और किसान दोनों को धन्यवाद देना होगा। गौरतलब हो कि सब्जी की खेती के लिए सरकार भी काफी सब्सिडी एवं ऋण व्यवस्था की हुई है। इस अग्रिम अनुमान में यह भी देखा जा रहा है कि पिछले साल फलों का उत्पादन के मुताबिक इस साल 10 करोड़ 72.4 लाख तक बढ़ने का पूर्वानुमान है। जानकारी के अनुसार पिछले साल फलों का उत्पादन 10 करोड़ 24.8 लाख दर्ज किया गया था।

MSP Committee: संयुक्त किसान मोर्चा को बिनोद आनंद पर क्यों है आपत्ति?

MSP Committee: संयुक्त किसान मोर्चा को बिनोद आनंद पर क्यों है आपत्ति?

संयुक्त किसान मोर्चा (Samyukt Kisan Morcha) ने एक प्रेस नोट जारी किया है। इसमें मोदी सरकार द्वारा गठित एमएसपी कमेटी (MSP Committee) के सदस्य बिनोद आनंद की सदस्यता को कटघरे में रखा गया है। मोर्चा के मुताबिक आनंद का कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। कौन हैं बिनोद आनंद, कृषि और कोऑपरेटिव और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का उन्हें कितना अनुभव है। एमएसपी कमेटी में शामिल किए जाने पर संयुक्त किसान मोर्चा को आपत्ति क्यों है? जानिये-

विरोधाभास की वजह

केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा वृहद समिति के गठन के बाद संयुक्त किसान मोर्चा की नाराजगी और बढ़ गई है। इस बार केंद्र सहित सदस्य बिनोद आनंद निशाने पर हैं।



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केंद्र सरकार के केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने वृहद समिति के गठन का कारण कृषि एवं कृषक उन्नयन के प्रति सरकार की सजगता बताया है। केंद्र सरकार द्वारा बहुप्रतीक्षित एमएसपी कमेटी (MSP Committee) गठन के बाद विपक्ष की ओर से कांग्रेस और बसपा ने लिखित सवाल किए थे।

तीन नाम रिक्त

कमेटी के गठन के लिए सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से तीन नाम प्रस्तावित करने कहा था। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने मोर्चा की ओर से इस समिति के लिए प्रस्तावित नामों के लिए 6 महीने तक इंतजार किया। इस संदर्भ ने मोर्चा ने अभी तक नाम नहीं सुझाए हैं।

समिति के खिलाफ मोर्चा का मोर्चा

कमेटी गठित होने के बाद मोर्चा ने सदस्यों के साथ ही सदस्य चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। मोर्चा ने कई सदस्यों पर सरकार और डब्ल्यूटीओ का समर्थक होने का आरोप लगाया है। ऐसे ही एक सदस्य बिनोद आनंद (Binod Anand) पर आरोप हैं कि उनका कृषि से कोई लेना देना ही नहीं है।



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वहीं दूसरी ओर आनंद के पक्ष में दावा है कि, बिनोद आनंद काफी लंबे अर्से से खेती-किसानी के साथ ही सहकारिता क्षेत्र के लिए सेवा प्रदान कर रहे हैं। वो किसान आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं, ऐसा भी उन्हें चुनने वालों का कहना है।

मोर्चा का प्रेस नोट

संयुक्त किसान मोर्चा अराजनैतिक ने आनंद की काबलियत पर प्रेस नोट के जरिए सवाल उठाए हैं। प्रेस नोट में दर्ज है कि, किसान सहकारिता समूह के प्रतिनिधि के तौर पर बिनोद आनंद को इस कमेटी में शामिल किया गया है, जिनका कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। मोर्चा ने सोशल मीडिया प्रोफाइल के हवाले से बिनोद आनंद को कटघरे में रखने की कोशिश की है। मोर्चा के अनुसार आनंद 2010-14 तक बीजेपी की ह्यूमन राइट्स सेल की नेशनल टीम में शामिल रहे। मोर्चा का ये भी कहना है कि आनंद ने धानुका एग्रो-केमिकल (Dhanuka Agritech Limited) में भी सलाहकार के तौर पर काम किया।

प्राइवेट कंसल्टेंसी का हवाला

अपने खिलाफ खोले गए मोर्चा के मोर्चे पर बिनोद आनंद ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने प्राइवेट सेक्टर में कंसंल्टेंसी से परिवार का भरण-पोषण करने का हवाला दिया एवं दूसरे किसान नेताओं को चंदाजीवी करार दिया। उन्होंने सवाल किया कि, बीजेपी का सदस्य होने से क्या कोई सदस्य किसान नहीं हो सकता? साथ ही जोड़ा कि, किसी भी पार्टी में आस्था रखने वाला सदस्य किसान हो सकता है।

बिनोद आनंद और कृषि कानून

बिहार में नवादा जिले के घोस्तमा गांव में रहने वाले बिनोद आनंद पढ़े-लिखे छोटे किसान हैं। आनंद खेती के तौर-तरीके बदलकर उसे मॉडर्न बनाने पक्षधर हैं, ताकि किसानों के जीवन स्तर में सुधार आ सके। आनंद चर्चा में इसलिए आए क्योंकि वे कृषि कानूनों में संशोधन करके उसे लागू करने के पक्ष में थे। उन्होंने इसके लिए कुछ शर्तों के साथ अपनी संस्था के नाम से इस कानून के पक्ष में 3,13,363 किसानों के समर्थन से संबंधित पत्र, आंदोलन के दौरान ही केंद्र सरकार को सौंप दिए थे। ये भी पढ़ेंकेन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

किया था विरोध

उन्होंने कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट (Model Contract Farming Act, 2018) में किसानों से कोर्ट जाने का अधिकार छीने जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इसके अलावा तीनों कृषि कानूनों के कुछ प्रावधानों पर भी उन्होंने आपत्ति जताई थी। इनमें सुधार की शर्त के साथ ही उन्होंने सरकार को समर्थन प्रदान किया था। आनंद का कहना है कि, मंदसौर किसान आंदोलन में उन्होंने शिव कुमार शर्मा कक्का और गुरुनाम सिंह चढूनी के साथ सहभागिता की थी। आनंद, राष्ट्रीय किसान महासंघ के सदस्यों में से एक सदस्य हैं। मंदसौर कांड मामले में जंतर-मंतर पर लंबे समय तक किए गए धरना प्रदर्शन में भी वे शामिल रहे। किसानों को कर्ज मुक्त करने के साथ ही कृषि फसल की पूरी कीमत की मांग के साथ वे आंदोलन कर चुके हैं।

कोऑपरेटिव रिलेशन

कोऑपरेटिव सेक्टर से उनके संबंधों के बारे में भी बात की जाती है। वे दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में कई कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं।

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वे सहकारिता क्षेत्र के जाने-माने संस्थान पुणे स्थित वैकुंठ मेहता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट के अल्मुनाई हैं। कृषि और कॉपरेटिव को लेकर आणंद, गुजरात स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट यानी इरमा और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस के कई कार्यक्रमों का वे हिस्सा रह चुके हैं। आनंद, कॉन्फेडरेशन ऑफ एनजीओ ऑफ रूरल इंडिया (सीएनआरआई) के महासचिव हैं।

आरोप नहीं नाम दें

आरोपों के जवाब में बिनोद आनंद ने उल्टा मोर्चा को सलाह दी है। उन्होंने कहा कि, लंबे इंतजार के बाद भी संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने नाम नहीं दिया है। ऐसे में सरकार ने एमएसपी व्यवस्था को प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने, फसल विविधीकरण और जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के लिए कमेटी का गठन कर दिया। सरकार ने इस वृहद समिति में मोर्चा की ओर से प्रस्तावित तीन नामों के लिए जगह भी रिक्त छोड़ी है। ऐसे में कमेटी के किसी सदस्य पर सवाल उठाने की बजाय मोर्चा को अपने आपसी झगड़ों को खत्म करना चाहिए। साथ ही मोर्चा को इस समिति का हिस्सा बनकर किसान के हित में काम करने के लिए सहयोग करना चाहिए। संयुक्त किसान मोर्चा से आनंद ने सहयोगी रुख अपनाने की अपील की है, वहीं मोर्चा का रुख सरकार के खिलाफ मोर्चा जारी रखने का नजर आ रहा है।
महाराष्ट्रः विदर्भ, मराठवाड़ा में फसलें जलमग्न, किसानों के सपनों पर फिरा पानी

महाराष्ट्रः विदर्भ, मराठवाड़ा में फसलें जलमग्न, किसानों के सपनों पर फिरा पानी

नांदेड़, हिंगोली, लातूर और बीड में नुकसान

गढ़चिरौली, नागपुर, बुलढाणा जिलों में सोयाबीन, कपास की खेती प्रभावित

देश के राज्यों में मौसम के बदले मिजाज ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। कई राज्यों में पिछले रिकॉर्ड के अनुसार देर से बारिश शुरू होने से
खरीफ की फसल लेट चल रही है, तो महाराष्ट्र में इतनी बारिश हुई कि किसानों की खेती पर संकट खड़ा हो गया। महाराष्ट्र के किसानों से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रदेश में भारी बारिश ने किसानों के सपनों पर पानी फेर दिया है। सूत्र आधारित सूचना के अनुसार महाराष्ट्र राज्य में आठ लाख हेक्येटर भूमि खेतों में लगी फसल पानी के कारण खराब हो गई। इंडियन एक्सप्रेस ने कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से महाराष्ट्र में भारी बारिश से फसलों के बारे में न्यूज रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ जिलों और तालुका में भारी बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हुई। खेतों में बाढ़ का पानी भरने से फसलों को खासा नुकसान हुआ। प्रदेश के मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाकों में मिट्टी का कटाव होने से नुकसान ज्यादा होने की आशंका है। प्रदेश में किसानों को हुआ नुकसान छिन्न-भिन्न स्थिति में हैं। विभागीय सरकारी स्तर पर यह नुकसान फिलहाल कुछ जिलों तक ही सीमित होने की बात कही गई है।

कहर बनकर बरपा जुलाई

महाराष्ट्र के किसानों के लिए जुलाई का महीना कहर बनकर बरपा। इस महीने के तीसरे सप्ताहांत में हुई भारी बारिश ने खेतों को तगड़ा नुकसान पहुंचाया। कृषि विभाग से प्राप्त सूत्र आधारित सूचना के अनुसार महाराष्ट्र राज्य में आठ लाख हेक्येटर भूमि खेतों में लगी फसल पानी के कारण खराब हो गई।

आईएमडी ने दी चेतावनी

फिलहाल किसानों की परेशानी कम होती नहीं दिख रही है क्योंकि, मौसम विभाग ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD - INDIA METEOROLOGICAL DEPARTMENT) ने उत्तरी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ और कुछ क्षेत्रों में आगामी एक सप्ताह तक अति बारिश का पूर्वानुमान व्यक्त किया है। एक सप्ताह लगातार हुई बारिश के बाद मिली राहत के बाद तटीय कोंकण में फिर एक बार मध्यम बारिश की संभावना जताई गई है।

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कितना पिछड़ी महाराष्ट्र में खेती

सामान्य मानसून की स्थिति में पिछले रिकॉर्ड्स के मान से महाराष्ट्र में अब तक डेढ़ सौ (152) लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में किसान बुवाई कर चुके होते। जून के महीने में ही महाराष्ट्र में आमद दर्ज कराने वाले मॉनसून से किसानों को जो आस बंधी थी, वह बारिश में देरी होने के कारण काफूर हो गई। बारिश में देरी के कारण बुवाई के लिए खेत तैयार करने के लिए किसान लगातार चिंतित रहे। कृषि मंत्रालय ने भी किसानों को पर्याप्त बारिश होने पर ही बुवाई करने की सलाह दी थी। जुलाई के पहले सप्ताह में हुई बारिश के बाद किसानों ने खेत में देर से बुवाई कार्य किया। पहले जिस बारिश ने किसान को बुवाई के लिए तरसाया उसी बारिश ने जुलाई के मध्य सप्ताहों में ऐसा तेज रुख अख्तियार किया कि किसानों के पास खेत में खराब होती फसलों के देखने के सिवाय कोई और चारा नहीं था।

उप-मुख्यमंत्री फडणवीस ने दिए निर्देश

उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से किसानों ने बाढ़ से हुए फसल के नुकसान का मुआवजा प्रदान कर अगली फसल के लिए सहायता एवं राहत प्रदान करने की मांग की है।

सोयाबीन सड़ी, कपास डूबी

महाराष्ट्र में विदर्भ का इलाका सोयाबीन और कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां भंडारा, गोंदिया, वर्धा, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, नागपुर, अमरावती, यवतमाल और बुलढाणा जिलों में भारी बारिश के कारण किसानों ने नुकसान की जानकारी दी है।

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मराठवाड़ा में नुकसान

मराठवाड़ा के लगभग सभी प्रमुख जिलों में भारी वर्षा के कारण कृषि उपज को नुकसान हुआ है। यहां नांदेड़, हिंगोली, लातूर और बीड जिलों में तेज बारिश से भारी बारिश होने की जानकारियां सामने आई हैं। महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भारी बारिश से प्रभावित संबंधित जिलों के प्रशासनिक अमले को नुकसान का आंकलन कर मुआवजा राशि तय करने के लिए निर्देशित किया है।

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नुकसान जांचने में परेशानी

महाराष्ट्र में तेज बारिश से हुए नुकसान का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि, बाढ़ की स्थिति के कारण प्रदेश में कई गांवों से संपर्क टूट गया है। संपर्क टूटने के कारण फील्ड अधिकारी एवं उनके मातहत बाढ़ एवं डूब प्रभावित इलाकों के किसानों के खेतों, मकानों में हुए नुकसान का आंकलन करने में असमर्थ हैं।
सब कुछ जानिये किसान हितैषी एफजीआर पोर्टल (FGR Portal) के बीटा वर्जन के बारे में

सब कुछ जानिये किसान हितैषी एफजीआर पोर्टल (FGR Portal) के बीटा वर्जन के बारे में

केंद्र ने छत्तीसगढ़ में बतौर पायलट प्रोजेक्ट किया है लॉन्च

केंद्र सरकार ने राज्य की किसान हितैषी नीतियों को देखते हुए छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय (The Union Ministry of Agriculture) ने 21 जुलाई को छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अपने किसान शिकायत निवारण (FGR) पोर्टल के बीटा वर्जन को लॉन्च किया है। यह एफजीआर पोर्टल (FGR Portal) क्या है, इससे किसानों को क्या मदद मिलेगी, पायलट प्रोजेक्ट क्या है, इससे जुड़ी खास बातें जानिये।

एफजीआर (FGR) -

फार्मर ग्रीवेंस रिड्रेसल (Farmer Grievance Redressal (FGR)) यानी किसान शिकायत निवारण (kisaan shikaayat nivaaran) पोर्टल का बीटा वर्जन केंद्र सरकार की पहल है। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क के अनुसार, छत्तीसगढ़ का चयन राज्य सरकार की किसान हितैषी नीतियों और कार्यक्रमों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।



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केंद्रीय मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ कृषि उत्पादन आयुक्त को इस कार्यक्रम में किसान प्रतिनिधियों, किसानों और पंचायत अधिकारियों के साथ कृषि विभाग के अधिकारियों की ऑनलाइन भागीदारी सुनिश्चित करने निर्देशित किया था।

ऑनलाइन पोर्टल सर्विस -

केंद्र सरकार के इस पायलट प्रोजेक्ट का मकसद छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों से जुड़ी समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान करने का है। केंद्र की नई योजना के तहत गुरुवार को छत्तीसगढ़ में किसानों की समस्याएं निपटाने ऑनलाइन पोर्टल की वर्चुअल लॉन्चिंग हुई। https://twitter.com/pmfby/status/1549984032548864000

एफजीआर इसलिए तैयार -

किसानों की खेती-किसानी संबंधी समस्याओं के निदान के लिए एफजीआर (FGR) तैयार किया गया है। खास तौर पर फसल बीमा से संबंधित शिकायतों के निपटारे के लिए एफजीआर को बनाया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा फिलहाल इस सुविधा को छत्तीसगढ़ में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। सकारात्मक परिणाम को देखते हुए बाद में इसे संपूर्ण देश में शुरू करने की योजना है।



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केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के एपीसी डॉ. कमलप्रीत सिंह से एफजीआर (FGR) पोर्टल के बारे में संपर्क साधे रखा।

पीएम फसल बीमा सफल क्रियान्वन -

गौरलतब है केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ का चयन प्रधानमंत्री फसल बीमा के क्रियान्वयन में बढ़िया प्रदर्शन के लिए किया है। प्रदेश ने पीएम फसल बीमा योजना में बेहतर परफॉरमेंस दिखाई है। बीमा दावा राशि के भुगतान में देश का अग्रणी राज्य होने की वजह से छग को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है।

बीटा वर्जन -

कृषि मंत्रालय ने राज्य में किसानों के पंजीयन, समर्थन मूल्य पर धान खरीदी, राजीव गांधी न्याय योजना, मुख्यमंत्री पौधरोपण प्रोत्साहन योजना संबंधी एकीकृत किसान पोर्टल के परिणामों को देखते हुए एफजीआर (FGR) के बीटा वर्जन की शुरूआत छत्तीसगढ़ में की है।

एफजीआर (FGR) पोर्टल कैसे करेगा काम -

वर्चुअली तरीके से 21 जुलाई शुरू एफजीआर के बीटा वर्जन के माध्यम से किसान अपनी खेती-किसानी संबंधी समस्याओं का समाधान कर सकेेंगे। विशेषकर फसल बीमा से संबंधित समस्याओं का निदान इससे हो सकेगा। किसानों द्वारा टेलीफोन अथवा मोबाइल के माध्यम से बताई गई समस्या एवं शिकायत इस पोर्टल में ऑनलाइन दर्ज की जाएगी। समस्याओं के निदान एवं मौजूदा स्थिति के बारे में किसानों को ऑनलाइन सूचित किया जाएगा।

किसान कॉल कर अपनी शिकायत टोल-फ्री नम्बर 14447 पर कराएं दर्ज :

किसान शिकायत निवारण (एफजीआर) पोर्टल में फसल बीमा से संबंधित शिकायत दर्ज कराने हेतु, किसान भाई टोल-फ्री नंबर 14447 पर कॉल करें। कॉल के पश्चात्, किसान की शिकायत कॉल सेन्टर द्वारा दर्ज की जाएगी व साथ ही साथ संबंधित बीमा कंपनी को शिकायत का विवरण प्रेषित कर, निर्धारित समय-सीमा में निराकरण करने हेतु निर्देशित किया जायेगा। किसान शिकायत निवारण पोर्टल के संचालित होने से, किसानों को अब फसल बीमा संबंधी शिकायतों के लिए कार्यालयों और अधिकारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेगें और लिखित आवेदन की भी आवश्यकता नहीं रहेगी। किसान के मोबाईल नंबर पर शिकायत दर्ज कराने का संदेश व शिकायत क्रमांक आयेगा, जिसके माध्यम से शिकायत पोर्टल पर शिकायत की वास्तविक स्थिति का पता ऑनलाईन लगाया जा सकता है।
केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलों की ताबड़तोड़ खरीददारी कर रही है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है, कि अब तक केंद्र सरकार 24,000 टन मूंग खरीद चुकी है। इसके साथ ही सरकार आगामी दिनों में 4,00,000 टन खरीफ मूंग की खरीददारी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार यह 4,00,000 टन खरीफ मूंग उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों के किसानों से खरीदेगी।


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अधिकारियों ने बताया है, कि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को पूरी तरह से केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय नियंत्रित करता है। कृषि मंत्रालय जब देखता है, कि बाजार में फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिर गए हैं, तब कृषि मंत्रालय मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलें खरीदना प्रारंभ कर देता है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर न होना पड़े। यह खरीददारी कृषि मंत्रालय के आधीन आने वाला भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) करता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अभी तक 24,000 टन मूंग की खरीदी हो चुकी है, जिसमें से 19,000 टन अकेले कर्नाटक के किसानों से खरीदी गई है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल पाए। इसके लिए खरीदी प्रक्रिया की हर राज्य में सघनता से जांच की जा रही है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को बेचने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न होने पाए।


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न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों की खरीद जारी रहेगी
बकौल कृषि मंत्रालय, मूंग के अलावा 2022-23 खरीफ सत्र में उगाई गई 2,94,000 टन उड़द और 14 लाख टन मूंगफली की भी खरीददारी की जाएगी। कृषि मंत्रालय ने इसकी स्वीकृति भी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) को भेज दी है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने कृषि मंत्रालय को अपने जवाब में बताया है, कि इस साल अभी तक उड़द और मूंगफली की खरीद नहीं हो सकी है। क्योंकि अभी भी बाजार में इन दोनों फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत ज्यादा ऊपर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने अभी तक जिन फसलों की खरीद की है। उन्हें कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को देना शुरू कर दिया है, ताकि इन फसलों को पीडीएस के माध्यम से खपाया जा सके। इसी तरह अगर खरीफ की फसलों के अंतर्गत आने वाले धान की फसल की बात करें, तो अभी तक भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) के माध्यम से सरकार ने 306.06 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। जबकि सरकार का लक्ष्य 775.72 लाख टन धान खरीदने का है।
नैनो DAP किसान भाइयों के लिए अब 600 रुपए में उपलब्ध, जानें यह कैसे तैयार होता है

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कृषकों के लिए एक खुशखबरी है। दरअसल, अब से भारत के समस्त किसानों को इफको की Nano DAP कम भाव पर मिलेगी। किसानों को अपनी फसलों से बेहतरीन पैदावार पाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों को करना होता है। उन्हीं में से एक खाद व उर्वरक देने का भी कार्य शम्मिलित है। फसलों के लिए डीएपी (DAP) खाद काफी ज्यादा लाभकारी माना जाता है। भारतीय बाजार में किसानों के बजट के अनुरूप ही DAP खाद मौजूद होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि दुनिया का पहला नैनो डीएपी तरल उर्वरक गृह एवं सहकारिता मंत्री द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया। केंद्रीय आवास और सहकारिता मंत्री ने नई दिल्ली में इफको (IFFCO) के मुख्यालय में इफको के नैनो डीएपी तरल (Nano Liquid DAP) उर्वरकों को राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित किया। एफसीओ के अंतर्गत इंगित इफको नैनो डीएपी तरल शीघ्र ही किसानों के लिए मौजूद होगा। अगर एक नजरिए से देखें तो यह पौधे के विकास के लिए एक प्रभावी समाधान है। खबरों के अनुसार, यह 'आत्मनिर्भर कृषि' के पारंपरिक डीएपी से सस्ता है। डीएपी का एक बैग 7350 है, जबकि नैनो डीएपी तरल की एक बोतल केवल 600 रुपये में उपलब्ध है।

जानें DAP का उपयोग और इसका उद्देश्य क्या है

यह इस्तेमाल करने के लिए जैविक तौर पर सुरक्षित है और इसका उद्देश्य मिट्टी, जल एवं वायु प्रदूषण को कम करना है। इससे डीएपी आयात पर कमी आएगी। साथ ही, रसद और गोदामों से घर की लागत में काफी गिरावट देखने को मिलेगी। बतादें, कि तरल उर्वरक दुनिया के पहले नैनो डीएपी (Nano DAP), इफको द्वारा जारी किया गया था। नैनो डीएपी उर्वरक का उत्पादन गुजरात के कलोल, कांडा एवं ओडिशा के पारादीप में पहले ही चालू हो चुका है। इस साल नैनो डीएपी तरल की 5 करोड़ बोतलों का उत्पादन करने का लक्ष्य है, जो सामान्य डीएपी के 25 लाख टन के बराबर है। वित्त वर्ष 2025-26 तक यह उत्पादन 18 करोड़ होने की आशा है। ये भी पढ़े: दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

नैनो DAP तरल नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत माना जाता है

नैनो डीएपी तरल नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत माना जाता है। साथ ही, यह फास्फोरस व पौधों में नाइट्रोजन व फास्फोरस की कमी को दूर करने में सहायता करता है। नैनो डी-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) तरल भारतीय किसानों द्वारा विकसित एक उर्वरक है। उर्वरक नियंत्रण आदेश के मुताबिक, भारत की सर्वोच्च उर्वरक सहकारी समिति (इफको) को 2 मार्च, 2023 को अधिसूचित किया गया था। साथ ही, भारत में नैनो डीएपी तरल का उत्पादन करने के लिए इफको को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी। यह जैविक तौर पर सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है। अपशिष्ट मुक्त साग की खेती के लिए उपयुक्त है। इससे भारत उर्वरकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर तीव्रता से निर्भर रहेगा। नैनो डीएपी उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा व जीवन दोनों को भी बढ़ाएगा। किसान की आमदनी और भूमि के संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान होगा। ये भी पढ़े: ‘एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

नैनो DAP कैसे निर्मित हुई है

नैनो DAP के मामले में इफको के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने बताया है, कि "नैनो डीएपी को तरल पदार्थों के साथ निर्मित किया गया है। किसान समृद्धि और आत्मनिर्भर भारत के लिए पीएम मोदी का विजन किसानों की आमदनी बढ़ाने एवं उन्हें बेहतर करने के उद्देश्य से लगातार कार्य कर रहा है। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. यू एस अवस्थी ने बताया है, कि नैनो डीएपी तरल पदार्थ फसलों के पोषण गुणों एवं उत्पादकता को बढ़ाने में काफी प्रभावी पाए गए हैं। इसका पर्यावरण पर काफी सकारात्मक असर पड़ता है।
पीएम फसल बीमा योजना में आवेदन की अंतिम तारीख बढ़ कर 16 अगस्त हो गई है

पीएम फसल बीमा योजना में आवेदन की अंतिम तारीख बढ़ कर 16 अगस्त हो गई है

सरकार ने पीएम फसल बीमा के पंजीयन की आखिरी तारीख को बढ़ा दिया है। जहां 31 जुलाई ही रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख थी। उसको अब बढ़ाकर 16 अगस्त कर दी गई है। केंद्र सरकार ने किसानों के फायदे के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चलाई गई थी। भारत के किसानों की फसल बारिश, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की वजह से तबाह हो जाती थी। ऐसी स्थिति में किसानों को आर्थिक मदद के लिए भारत सरकार नें पीएम फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी, जिससे इन विपदाओं से बचने के लिए किसान अपनी फसलों का बीमा करा सकें।

पीएम फसल बीमा योजना में आवेदन की अंतिम तारीख

केंद्र सरकार ने किसानो को काफी राहत प्रदान की है। इस दौरान फसल बीमा के रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख को बढ़ा दिया गया है। इसके लिए रजिस्ट्रेशन की तारीख 31 जुलाई थी। परंतु, कृषि मंत्रालय ने इसको 16 अगस्त तक आगे बढ़ा दिया है। अब देश के किसान ऑनलाइन माध्यम से अथवा अपने नजदीकी कॉमन सर्विस सेंटर जाकर इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में आवेदन का तरीका

आप किसान भाई अपनी खरीफ की फसलों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के पोर्टल ( www.pmfby.gov.in) पर जाकर अपनी फसल के बीमा के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत किसान की फसलों के व्यक्तिगत नुकसान का लाभ मिलेगा, जो पहले सिर्फ सामूहिक स्तर पर ही मिलता था। इन सभी नुकसानों की भरपाई सरकार द्वारा निर्धारित बीमा कंपनियों द्वारा की जाती है।

फसल क्षति के 72 घंटे के अंदर सूचना देना अनिवार्य है

अगर आपकी फसल की बर्बादी प्राकृतिक आपदा की वजह से होती है। ऐसे में आप 72 घंटों के अंदर किसान क्रॉप इंश्योरेंस ऐप के जरिए इसकी जानकारी दे सकते हैं। इसके अलावा आप बीमा कंपनियों द्वारा प्रदान किए गए टोल फ्री नंबर पर भी कॉल कर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

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प्रीमियम की धनराशि कितनी है

सरकार ने विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए इसकी प्रीमियम दर निर्धारित की है। अगर आप भी पीएम फसल बीमा योजना का लाभ उठाना चाहते हैं, तो इसके लिए एक निर्धारित प्रीमियम का भुगतान करना पड़ेगा। किसानों के आर्थिक हालातों को देखते हुए सरकार ने इस प्रीमियम का मुल्य बहुत कम रखा है। आपको अपनी खरीफ की फसल के लिए 1.5 प्रतिशत और बागवानी की फसल के लिए अधिकतम 5 प्रतिशत के प्रीमियम का भुगतान करना पड़ेगा।
किसानों के लिए फसल बीमा और उसके लाभ

किसानों के लिए फसल बीमा और उसके लाभ

Dr. Hari Shankar Gaur
डॉ हरि शंकर गौड़
प्रतिष्ठित प्रोफेसर, गलगोटोआस विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा
व कुलपति, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ

भारत गांवों की आर्थिक विकास का मूल आधार है और भारतीय कृषि उद्योग देश के अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लाखों परिवार भारतीय कृषि पर निर्भर हैं और इसका उत्तरदायित्व निभाते हैं। फसल बीमा की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जो किसानों को उनकी मेहनत का परिणाम सुनिश्चित करने में मदद करती है। हम फसल बीमा के महत्व और किसानों के लिए इसके लाभ पर चर्चा करेंगे।

फसल बीमा क्या है?

फसल बीमा एक प्रकार की बीमा है जो किसानों की फसलों को अनियामित मौसम परिस्थितियों से बचाने में मदद करती है। यह किसानों को उनकी लागतों को कम करने और उनकी आय को सुनिश्चित करने का मौका देती है।
फसल बीमा योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जाती हैं, और वे किसानों को फसल के नुकसान के मामले में आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं।

कृषि बीमा निगम

भारत में किसानों की सुरक्षा और उनकी खेती की रक्षा के लिए कृषि बीमा निगम (Crop Insurance Corporation) एक महत्वपूर्ण संगठन है। यह सरकार द्वारा स्थापित किया गया है और भारत के किसानों को विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं और अनुपातित परिस्थितियों से बचाने का काम करता है। कृषि बीमा निगम का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी खेती की लागत के हानियों से मुक्त करना है। यह सरकारी योजना के तहत किसानों को उनकी फसलों के लिए बीमा करवाने की सुविधा प्रदान करता है जिससे वे अपनी खेती को आत्मनिर्भरता से चला सकें। अधिक जानकारी के लिए देखें : www.aicofindia.com, https://policyholder.gov.in/crop-insurance, www.pmfby.gov.in and https://irdai.gov.in. भारत में फसल बीमा सहित बीमा क्षेत्र के विकास और विनियमन में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की प्रमुख भूमिका है। कृषि बीमा निगम के अंतर्गत विभिन्न योजनाएँ होती हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), रष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS), और मेट कृषि बीमा योजना (MNAIS) आदि। इन योजनाओं के तहत किसान अपनी फसलों को विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि बाढ़, सूखा, बर्फबारी, और वर्षा, रोग, कीट आदि से बचाने के लिए बीमा करवा सकते हैं।

फसल बीमा के लाभ

निवेश सुरक्षा: फसल बीमा किसानों को उनके निवेश की सुरक्षा प्रदान करता है। जब किसान अपनी फसलों की बीमा करवाता है, तो वह अनियामित मौसम परिस्थितियों से होने वाले नुकसान के खिलाफ सुरक्षित होता है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और उन्हें निवेश करने की आत्म-समर्थन मिलता है।

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किसानों की आय की सुरक्षा: फसल बीमा किसानों को उनकी मुख्य आय स्रोत की सुरक्षा प्रदान करता है। अगर किसान की फसल किसी प्रकार के नुकसान का शिकार होती है, तो फसल बीमा से उन्हें आर्थिक मदद मिलती है। इससे किसान अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है। कृषि उत्पादन में वृद्धि: फसल बीमा के प्रावधान से किसान अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं और उन्हें कृषि उत्पादन में वृद्धि करने का साहस मिलता है। जब किसान निश्चित है कि उनकी मेहनत फसल के नुकसान से नहीं जा रही है, तो वे अधिक उत्साहित रहते हैं और अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। कृषि साहित्य की सुधार: फसल बीमा से किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारती है और उन्हें अधिक शिक्षा और साहित्यिक विकास की दिशा में अधिक संरचित बनाता है। इसके परिणामस्वरूप, कृषि साहित्य का स्तर भी बढ़ता है और किसानों के पास अधिक ज्ञान होता है, जिससे उनका कृषि उत्पादन भी सुधरता है। सामाजिक सुरक्षा: फसल बीमा से किसान सामाजिक सुरक्षा का भी आभास करते हैं। अगर किसान की फसल में कोई नुकसान होता है, तो उसे अधिक सामाजिक परिस्थितियों का सामना करने की आवश्यकता नहीं होती है। वह अपने परिवार को समर्थन देने में सक्षम रहता है और समाज के अन्य सदस्यों की मदद कर सकता है।

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सुझाव और तकनीकी सहायता: फसल बीमा योजनाएं किसानों को नई तकनीकों और बेहतर प्रौद्योगिकियों के साथ खेती करने का मौका देती हैं। सरकार और बीमा कंपनियां अक्सर किसानों को बेहतर खेती के लिए सुझाव और तकनीकी सहायता प्रदान करती हैं, जिससे किसान अधिक उत्तेजना और जागरूक होते हैं। बचत और निवेश का मौका: फसल बीमा किसानों को अपनी बचत और निवेश की सुरक्षा प्रदान करती है। जब किसान फसलों की बीमा करवाता है, तो वह अपनी आर्थिक संरचना को मजबूत करने का मौका पाता है। इससे किसान अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए निवेश कर सकता है और अधिक बचत कर सकता है। बिना तनाव के खेती: फसल बीमा से किसान बिना तनाव के खेती कर सकता है। जब उनकी फसलों की सुरक्षा बीमा कवर में होती है, तो वे मौसम की परिस्थितियों से चिंता किए बिना खेती कर सकते हैं। इससे किसान का मानसिक दबाव कम होता है और वह अधिक सक्षमता से काम कर सकता है। सरकारी सहायता: फसल बीमा की योजनाओं में सरकार भी भाग लेती है और किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। इससे किसानों को अधिक आर्थिक सहायता मिलती है और वे अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं। सामाजिक अवसरों का विस्तार: फसल बीमा से किसानों के पास अधिक सामाजिक अवसर होते हैं। उन्हें अपने खेतों के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक स्थिति मिलती है, जिससे उनका सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। संक्षेप में, फसल बीमा किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुरक्षा का स्रोत है और इसके कई लाभ हैं। इसके माध्यम से, किसान अपनी फसलों की सुरक्षा बीमा कवर के तहत रख सकते हैं और अनियामित मौसम परिस्थितियों से अपने निवेश और आय की सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। फसल बीमा की योजनाएं सरकार और बीमा कंपनियों के साथ मिलकर किसानों को अधिक तकनीकी और आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं, जिससे किसान अपनी खेती को सुधार सकते हैं और अधिक सामाजिक सुरक्षा का आभास करते हैं। इसके तरीके से, फसल बीमा किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुरक्षा का स्रोत है और उन्हें आरामदायक और सुरक्षित खेती का मौका प्रदान करता है।
pmfby: पीएम फसल बीमा योजना को लेकर किसानों का क्या कहना है ?

pmfby: पीएम फसल बीमा योजना को लेकर किसानों का क्या कहना है ?

पीएम फसल बीमा योजना का फायदा प्राप्त करने के लिए कृषक भाई यहां दी गई प्रक्रिया को फॉलो कर सकते हैं। किसान भाइयों की सहायता के लिए सरकार की तरफ से विभिन्न योजनाएं संचालित की जाती हैं, जिसमें से एक बड़ी योजना पीएम फसल बीमा योजना है। इस योजना के जारी होने से फिलहाल किसान भाइयों को फसल हानि का भय नहीं है। साथ ही, मौसम की वजह से यदि किसानों की फसल को हानि पहुँचती है, तब भी उन्हें योजना का फायदा मिलेगा। इसी कड़ी केरल के किसान विजयावन का कहना है, कि उन्हें कभी फसलों के क्षतिग्रस्त होने का भय तो कभी मौसम की अनिश्चितता हम कृषकों को घेरे रहती थी। परंतु, जब से प्रधानमंत्री फसल बीमा का सहयोग मिला है, तब से हम किसान और अधिक लगन-आत्मविश्वास के साथ किसानी में जुट गए हैं। बतादें, कि हमारे क्षेत्र में बाढ़ सबसे बड़ी दिक्कत है। हम स्थानीय लोग जलवायु परिवर्तन के मुताबिक खेती कर रहे हैं। परंतु, साथ-साथ गंभीर बाढ़ एवं हवाएं आती हैं, जो हमारी फसलों को काफी प्रभावित करती हैं। साथ ही, फसलों में कीड़े लग जाना भी सामान्य सी बात है। फसल बीमा के लिए पीएम फसल बीमा योजना सबसे बेहतरीन विकल्प है। किसान विजयावन के पास वर्ष 2019 से यह बीमा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना हमें संबल और शक्ति प्रदान कर रही है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्या होती है

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना केंद्र सरकार की तरफ से किसानों के लिए चलाई गई एक सरकारी बीमा योजना है। यह योजना किसानों को प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि बाढ़, ओलावृष्टि, सूखों, कीटों और रोगों से होने वाली हानि से संरक्षण के लिए है। 

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योजना का लाभ उठाने के लिए आवश्यक दस्तावेज 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ उठाने के लिए आपके पास आधार कार्ड, राशन कार्ड, जमीन का पट्टा, बैंक खाता पासबुक, फसल खराब होने का प्रमाण आदि जैसे प्रमाण पत्र या दस्तावेजों की अनिवार्यता होती है।  

पीएम फसल बीमा योजना के लिए कैसे आवेदन करें 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए आवेदन करने के लिए सबसे पहले किसान भाई आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं। इसके पश्चात वह होमपेज पर किसान कॉर्नर पर क्लिक करें। अब किसान अपना मोबाइल नंबर दर्ज कर लॉगिन करें। इसके बाद किसान समस्त आवश्यक डिटेल्स नाम, पता, आयु, राज्य इत्यादि दर्ज करें। बतादें, कि अंतिम में किसान भाई सबमिट बटन पर क्लिक करें।